Last modified on 19 मई 2010, at 13:41

अधर घट में भर मधु मुसकान / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:41, 19 मई 2010 का अवतरण ("अधर घट में भर मधु मुसकान / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अधर घट में भर मधु मुस्कान
मूर्ति बोली, ‘ऐ निष्ठावान,
तुझे क्यों भाया यह उपचार--
भजन, पूजन, दीपन, शृंगार!’
भक्त बोला, ‘जिसने अनजान
दिए हम दोनों को दो रूप,
उसी ने मुझे उपासक, प्राण!
बनाया तुम्हें उपास्य अनूप!