Last modified on 19 मई 2010, at 13:58

सुनहले फूलों से रच अंग / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:58, 19 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुनहले फूलों से रच अंग
सलज लाला सा मुख सुकुमार,
सुरा घट सा दे मादक रंग
शिखर तरु सा उन्नत आकार!
न जाने तुमने क्यों, करतार,
भरी प्राणों में तरुण उमंग,
बुना क्यों स्वप्न मधुर संसार
हृदय सर में भर मदिर तरंग!
रचे जो मुरझाने को फूल,
तड़पने को बुलबुल का प्यार,
उमर मदिराधर रस में भूल
न क्यों तब दे सब शोक बिसार!