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यह मेरा जनपद है / दिनकर कुमार
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यह मेरा जनपद है
विषाद को पीता है
वेदना को निगलता है
धुंध में सिसकता है
मेरे जनपद में केवल
अभाव का लोकगीत
गाया जाता है
सरसों के फूल
जैसे पीले चेहरों पर
सपनों की आह
सर्पदंश की तरह
नीले दाग़ बनकर
उभरती है
मेरे जनपद में स्वाभाविक
कुछ भी नहीं है
न जीवन का छंद
न चूल्हों का उत्सव
न सुकून की नींद
न उम्मीदों की सुबह
अंतहीन यंत्रणा की भट्ठी में
छटपटा रहा है मेरा जनपद ।