भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कविताओं से पहले / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:09, 22 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
और मैं सोचा करता था
निहायत सरल शब्द
होंगे पर्याप्त ।
जब मैं कहूँ, क्या है
हरेक का दिल जरूर चिंथा-चिंथा होगा ।
कि तुम डूब जाओगे
अगर तुमने लोहा न लिया
यह तो तुम देख ही रहे हो ।
::- बेर्टोल्ट ब्रेष्ट