साथ लेकर गया ही क्या था
जो पैर चूमता विषाद
पलकों पर उठा लेता
या भर लेता बाँहों में
साथ लेकर गया ही क्या था
जो सोना उगलते खेत
धुँध को चीरती धूप
बाँसुरी बजाता चरवाहा लड़का
साथ लेकर गया ही क्या था
जो शुरू होता चूल्हे का उत्सव
बंद हो जाता छप्पर से पानी का बहना
पथराई आँखों में तैरते सपने
साथ लेकर गया क्या था
इसीलिए
साथ ही लौटा विषाद
पगडंड़ियों से मुख्य सड़क तक