भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
धरती की तबियत ठीक नहीं है / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए बात-बात पर
झुंझला उठती है
अकारण ही मुँह फुला लेती है
किसी बात का गुस्सा
किसी बात पर उतारती है
धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए हवा आहिस्ता बहती है
गुमसुम परिंदे पंख नहीं फड़फड़ाते
नदियाँ उदासी के साथ
फुसफुसाती हैं
धरती की तबियत ठीक नहीं है
इसीलिए हमलोग
अकारण ही गुर्राने लगे हैं
घृणा के काँटे हमारी देहों में
उगने लगे हैं
संशय के अँधेरे ने
जीवन की गरिमा छीन ली है