भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

टीन की छत / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:37, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह निश्छल बच्ची की तरह
हल्के से छूती है
जगाती है

पंछियों का पदचाप
टीन की छत से छनकर
कानों तक पहुँचता है
खिड़की से झाँकता है
जाना-पहचाना आग का गोला
टीन की छत के नीचे ही
नवरस की अनुभूति करता हूँ

कभी वेदना से हाहाकार कर उठता है
हृदय
कभी आनंद से उछलने लगता है
हृदय
टीन की छत पर बारिश का संगीत
सुनते हुए

विषादग्रस्त रातों में भी
रोमानी अनुभूतियों से सराबोर
हो जाता हूँ
कि इस बुरे वक़्त में भी
आसमान और धरती के बीच
एक स्नेहमय आँचल
सिर पर है