भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
करुणा बचाकर रखो / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:39, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह=कौन कहता है ढलती नहीं ग़म क…)
करुणा बचाकर रखो
आपातकाल के लिए
अँग्रेज़ी पत्रिकाओं के चमकते
रंगीन पृष्ठों पर
लहूलुहान तस्वीरें
तुम्हें हिला नहीं सकतीं
रेंगते हुए
घिसटते हुए लोग और
उनकी चीख़ से
पिघलती नहीं
तुम्हारे भीतर संवेदना
इर्द-गिर्द की खामोशी
हताशा से झुलसे हुए चेहरे
तुम्हें सोचने के लिए
विवश नहीं कर सकते
बचाकर रखो करुणा
मुनाफ़े का सौदा करते वक़्त
किसी को
ग़ुलाम बनाते वक़्त
काम आएगी करुणा