भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सरिता से बहते जाते / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:34, 24 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)
सरिता से बहते जाते
चंचल जीवन पल,
आदि अंत अज्ञात,
ज्ञात बस फेनिल कल कल!
हार गए सब खोज,
मिली पर थाह न निस्तल,
डूब गया जो, पाया
उसने भेद, वह सफल!