Last modified on 24 मई 2010, at 18:26

ढालता रहता वह अविराम / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:26, 24 मई 2010 का अवतरण ("ढालता रहता वह अविराम / सुमित्रानंदन पंत" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ढालता रहता वह अविराम,
उमर पात्रों में मदिराधार,
सुनहले स्वप्नों का मधु फेन
हृदय में उठता बारंबार!
डूबते हम से तुम से, प्राण,
सहस्रों उसमें बिना विचार!
भरा रहता साक़ी का जाम,
बिगड़ते बनते शत संसार!