भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चुपके से कोई कहता है / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:42, 25 मई 2010 का अवतरण
चुपके से कोई कहता है : शाइर नहीं हूँ मैं ।
क्यों अस्ल में हूँ वो जो बज़ाहिर नहीं हूँ मैं ।
भटका हुआ-सा फिरता है दिल किस ख़याल में
क्या जादए-वफ़ा का मुसाफ़िर नहीं हूँ मैं ?
क्या वसवसा है, पा के भी तुमको यक़ीं नहीं
मैं हूँ जहाँ वहीं भी तो आख़िर नहीं हूँ मैं ।
सौ बार उम्र पाऊँ तो सौ बार जान दूँ
सदक़े हूँ अपनी मौत पे काफ़िर नहीं हूँ मैं ।
रचनाकाल : 1971