भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अपने दिल का हाल यारो / शमशेर बहादुर सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:43, 25 मई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अपने दिल का हाल यारो, हम किसी से क्या कहें;
कोई भी ऎसा नहीं मिलता जिसे अपना कहें।

हो चुकी है जब ख़त्म अपनी ज़िन्दगी की दास्ताँ
उनकी फ़रमाइश हुई है, इसको दोबारा कहें!

आज इक ख़ामोश मातम-सा हमारे दिल में है:
ख़ाब के से दिन हैं, वर्ना हम इसे जीना कहें।

यास! दिल को बांध, सर पर जल्द साया कर, जुनूँ
दम नहीं इतना जो तुमसे साँस का धोका कहें।

देखकर आख़ीर वक़्त उनकी मौहब्बत की नज़र
हम को याद आया वो कुछ कहना जिसे शिकवा कहें।

उनकी पुरहसरत निगाहें देख कर रहम आ गया
वर्ना जी में था कि हम भी हँस के दीवाना कहें।

काफ़िले वालो, कहाँ जाते हो सहरा की तरफ़,
आओ बैठो तुमसे हम मजनूँ का अफ़साना कहें।

मुश्कबू-ए-जुल्फ़ उसकी, घेर ले जिस जा हमें,
दिल ये कहता है, उसी को अपना काशाना कहें।


रचनाकाल : 1935