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चाँदनी वन-वन भटक रही / गुलाब खंडेलवाल
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चाँदनी वन-वन भटक रही
हरिणी-सी गृह-पाश तुड़ाये
झिलमिल पथ में रेणु उड़ाये
वेणु-चकित पट-छोर छुड़ाये
सर पर दधि की मटकी ले कुंजों में अटक रही
अटपट-सी गति में लपटायी
खड़ी गगन-पनघट पर आयी
कसी नीलपट में तरुणाई
गौर कपोलों पर तरु-शाखा लट-सी लटक रही
फूटी कर से छुटकर गागर
विफल बह रहा रस का सागर
तट से दूर गये नटनागर
विरहिन राधा-सी रो-रोकर ज्यों सिर पटक रही
चाँदनी वन-वन भटक रही