भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
चाँदनी विदा ले रही सबसे / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 25 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=चाँदनी / गुलाब खंडेलवाल }…)
चाँदनी विदा ले रही सबसे
भू से, वन से, कुंज-भवन से
कंपित बेलों से, हिमकण से
कलि से, तितली से, अलिगण से,
तरु से, पत्तों से, फूलों से,
परिमल से, पिकरव से
चाँदनी विदा ले रही सबसे
मुख पर घन-अवगुंठन झीना
रो-रो दृग नलिनी श्री-हीना
करुण सजल किरणों की वीणा
खिल-खिल हँसती हुई पुलिन पर
मिल न सकेगी अब से
चाँदनी विदा ले रही सबसे
तम से झिलमिल प्रियतम से मिल
मूक, विवश मुड़ती-सी, धूमिल
झरते वकुल, रो रही कोकिल
दीपक हिल-हिल माँग रहा है
अंतिम चुंबन कब से
चाँदनी विदा ले रही सबसे