Last modified on 25 मई 2010, at 21:05

यह जग मेघों की चल माया / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:05, 25 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह जग मेघों की चल माया,
भावी, स्वप्नों की छल छाया!
तू बहती सरिता के जल पर
देख रहा अपनी प्रतिछबि नर!
उठे रे, कल के दुख से व्याकुल,
जीवन सतरँग वाष्पों का पुल!
कल का दुख केवल पागलपन,
पल पल बहता स्वप्निल जीवन!
ले, उर में हाला ज्वाला भर,
सुरा पान कर, सुधा पान कर!