भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुई थी मदिरा मुझको प्राप्त / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:51, 26 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} हिचकते औ' होते भयभीत सुरा को …)
हिचकते औ' होते भयभीत
सुरा को जो करते स्वीकार,
उन्हें वह मस्ती का उपहार
हलाहल बनकर देता मार;
- मगर जो उत्सुक-मन, झुक-झूम
- हलाहल पी जाते सह्लाद,
- उन्हें इस विष में होता प्राप्त
- अमर मदिरा का मादक स्वाद।