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सुरा पी थी मैंने दिन चार / हरिवंशराय बच्चन
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सुरा पी थी मैंने दिन चार
उठा था इतने से ही ऊब,
नहीं रुचि ऐसी मुझको प्राप्त
सकूँ सब दिन मधुता में डूब,
- हलाहल से की है पहचान,
- लिया उसका आकर्षण मान,
- मगर उसका भी करके पान
- चाहता हूँ मैं जीवन-दान!