आँख और लड़की / शैल चतुर्वेदी
जैसी भी, आखिर लड़़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहाँ भी तो कड़की है
हमने कहा-
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले- गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फँस गया तो सम्भल जाओगे।
तब एक दिन भगवान से मिलके
धडकते दिल से
पहुँच गये रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली-
यात्रा में तकलीफ़ तो नहीं हुई
और आँख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई
बोली-
लड़की तो अंदर है,
मैं लड़की की माँ हूँ ,
लड़की को बुलाऊँ?
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ,
आँख चल गई दुबारा ,
उन्हों ने किसी का नाम ले पुकारा,
झटके से खड़ी हो गईं।
हम जैसे गए थे लौट आए,
घर पहुँचे मुँह लटकाए,
पिताजी बोले-
अब क्या फ़ायदा ,
मुँह लटकाने से ,
आग लगे ऐसी जवानी में,
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आँखें फोड़ लो,
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो।
जब भी कहीं आते हो,
पिटकर ही आते हो ,
भगवान जाने कैसे चलते हो?
अब आप ही बताइए,
क्या करूँ, कहाँ जाऊँ?
कहाँ तक गुण आऊँ अपनी इस आँख के,
कमबख़्त जूते खिलवाएगी,
लाख दो लाख के,
अब आप ही संभालिये,
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिए।
जवान हो या वृद्धा, पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की जिसकी आँख चलती हो,
पता लगाइए और मिल जाये तो,
हमारे आदरणीय काका जी को बताइए।