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भरी धूप में / निर्मला गर्ग

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भरी धूप में चला जा रहा भैंसा
बुग्गी उठाए

बुग्गी में भरी हैं रोड़ी
बुग्गी में भरा है सीमेंट
बुग्गी में भरी है मिटटी

किसी का घर बनेगा
तोरण सजेगा
मुहूरत होगा ठाट-बाट से

याद नहीं करेगा कोई
रोयें नुचे इस भैंसे को
भरी धूप में ढोता रहा जो
बुनियाद घर की
हाँफता रहा प्यास और थकन से

                  
रचनाकाल : 1987