भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाव रोटी की बात / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:09, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बावजूद इसके कि वह रो रही है
मैं नहीं करूँगा पावरोटी की बात
माँ दो दिन पुरानी रोटियों के बासी सूखे टुकड़ों को
भिगोयेगी गुड़ के पानी में और
करेगी इंतजार कि लौट सके
बासी सूखे टुकड़ों से
थोड़ा नरमानरम अहसास पावरोटी का
चुराता आँखें देखता रहूँगा माँ के साथ
पत्नी की कातर आँखों में
मैं बिल्कुल नहीं करूँगा पावरोटी की बात
मेरी जेब से एकदम बाहर
ये महीने के आखिरी दिन हैं