भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आह्लाद के प्रति / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:21, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रोजमर्रा की खबरों से
एकदम अलग होती है यह खबर
कि कोई आए उस घड़ी जब
मौसम खिलाफ हो यात्राओं के
और छोड़ देते हों सब मित्र को घने अकेलेपन में

आदत के मुताबिक ठीक ऐसे ही समय
आया था वह
अकेला था मैं और आकाष
निहारता रहा कई-कई दिनों तक
जैसे मिला हो जन्म-जन्मांतर बाद

उसने काट दिये कई दिन
यहां तक लंबी भयावह रातें भी
रहा एकदम चुप
या सहलाता रहा आस-पास कुछ इस तरह
मानों फेर रहा हो अंगुलियाँ
अहसास के धूसर बालों में

एक दिन बिना कुछ कहे
लौट गया वापस वह
कोई फर्क पड़ा, न पड़ा हो उसे
कह नहीं सकता
बहुत गहरा असर है हवाओं में लेकिन

हवाएँ छोड़ रहीं हैं जगह
मैंने बस खोल दिया है पंखा पूरी गति में