भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चिन्ता / लीलाधर मंडलोई

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:23, 28 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लीलाधर मंडलोई |संग्रह=रात-बिरात / लीलाधर मंडलोई …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थुबते ही नहीं हैं पाँव
झींकती है रात दिन वह


मुँडेर पर उसकी एक कौव्वे का चीखता
गुनती है रोज माँ
माँ उदास है

परछट्टी में बैठे बड़ाते हैं
वही कौव्वा देर तक बापू
बापू भयभीत हैं

भाइयों को कुछ नहीं मालूम
वे धींगामुस्ती कर रहे हैं
बाहर और यहाँ तक घर में

माँ को अच्छा लगता है यह सब
और वह परेषान है

माँ की आँखों में चिंता है बाद की
कितना सही है यह समय उसके माँ हो जाने का