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सत्य कहना, हे जगदाधार! / गुलाब खंडेलवाल
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सत्य कहना, हे जगदाधार!
कभी तुम्हें भी विचलित करता जग का हाहाकार?
क्या तुम भी इस मर्त्यलोक के
सुनकर करुण विलाप शोक के
कभी काल का चक्र रोक के
दिखलाते हो प्यार!
या बस शून्य भवन में अपने
देख रहे सोकर ज्यों सपने
देते रोने और कलपने
हमको समझ असार
तुम असंग यदि मोह न मन में
क्यों है वह इस चेतन कण में!
क्या न वही बन भक्ति, गगन में--
जोड़े तुमसे तार!
सत्य कहना, हे जगदाधार!
कभी तुम्हें भी विचलित करता जग का हाहाकार?