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कलयुग का अर्जुन / विजय कुमार पंत

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कलयुग का अर्जुन..

देखो वहां जगह जगह जो भी खड़ा है सब में मेरा ही चरित्र चढ़ा है ये सिद्धांतों और गरिमा से लड़ने वाले मेरे आत्मीय जन या कौरव बन्धु नहीं ये चरित्र हीन,अमर्यादित,भ्रष्ट पिपासु,और लोलुप मनुष्य खड़ा है

हे देवकीनंदन मुझे इन सबसे लड़ना है, अस्त्र-शस्त्र विहीन मैं विवश हूँ,क्या करुँ मुझे सदबुद्धि या थोड़ा आशीर्वाद ही दे दो मैं आपका प्रिय पार्थ नहीं इस कलयुग का अर्जुन हूँ