पिंडलियों से उठती धमक / लीलाधर मंडलोई
कुछ बच्चे बाकायदा तयशुदा कीमतों पर
कम उम्र से कर लिये जाते हैं आखेट
इनकी जगहें हैं जहां वे अलस्सुबह पहुँच जाते हैं
और पहुँच जाते हैं आखेटक बहुत पहले
मुआयने के दौरान वे चेहरे का ताप, नन्हीं भुजाओं का बल और
खासतौर पर पिंडलियों से उछलती चमक पर निगाह रखते हैं
ऐसे बच्चों की आँखों में अशक्त माँ-बाप घूमते हैं
उन्हें आसानी से आखेट कर लिया जाता है
भयावह स्वप्न की तरह आखेटक उनकी उनींदी आँखों में आते हैं
बचपन की कहानियाँ तब उन्हें सच मालूम होती हैं
अपनी जगह किसी वीर चरित्र की कल्पना में
वे अपनी मासूम देह तोड़ते हैं
ऐसे बच्चों को कुछ सालों में
लपरवाह नजरों से सहज पढ़ा जा सकता है
मसलन वे चिमटकर सोने की जगह
माँ की सूखी हड्डियों पर पिंडलियाँ टिकाकर सोते हैं
सुस्ताते वक्त उनकी पिंडलियाँ किसी ठोस वस्तु पर
अमूमन बेचैनी में घूमती देखी जा सकती हैं
ताउम्र उनकी सोने की जगह बदलती रहती है
घर में नये भाई या बहन के आने पर उन्हें
बगल के बिस्तरों में सरका दिया जाता है
रात भर पाँव पटकने की प्रतिक्रिया में
पिता या भाई रात भर गरियाते सुने जा सकते हैं
पढ़ाई जैसी समस्या इनकी किस्मत में बनिस्बत कम होती है
कुछ तब भी होते हैं, जो पढ़ने की बेतरह सनक में आ जाते हैं
बाघ के बच्चों को पालने की हवस बाजदफा पस्त होती है
ऐसे विद्रोह पर उतारू बच्चों के लिए
कुछ खैराती स्कूल उन्होंने तय रख छोड़े हैं
परास्त भव में जहाँ भेजना लाजिमी हो जाता है
मुफ्त किताब-कापियां और पोषाक के एवज में तब भी
उनकी चैंध पैदा करती पिंडलियाँ रेहन रखी रहती हैं
बदलें में वे खरीद चुके होते हैं उनके
अगले भाइयों की पिंडलियों से उमगती चमक
पास के किसी शहर में सरकारी हाकिमों के सौंप वे
बच्चों की व्यवसायिक अहमियत पर व्याख्यान देते हैं
एक क्रम बदस्तूर चलता रहता है
मुफ्त राशन, रहवास और इनी-गिनी सुविधाओं के नाम पर
नफीस तबियत के नये हाकिम अपने घरों पर
उनकी पिंडलियों का कलात्मक इस्तेमाल करते हैं
अक्सर बागीचों में उन्हें पेड़-पौधों से दोस्ती के महत्व पर
भविष्य का पर्यावरण विषेषज्ञ बना दिया जाता है
शहर में ज्यादातर ऐसे बच्चे एक तरह के होते हैं
हड्डियों के ठोसपन में मनुष्य सरीखे
पिंडलियों के लिए आरामदेह जगह और सुकून भर नींद
आपस में मिलजुलकर कबाड़ लेते हैं वे जो
उन्हें चिड़चिड़ा या विद्रोही होने से बचाये रखती है
किसी सुबह सालों की सनक के चलते बतौर सभ्य नागरिक
एक दिलचस्प पुरजा देकर उन्हें हकाल दिया जाता है
उनकी आँखों में तब भी चलती है बचपन की फिल्म
कुछ कर गुजरने का जज्बा रहता है तब भी बाकी और
एक तरह के दो-तीन बच्चे नमूदार होते हैं किसी कुठरिया में
ढिबरी भर रोशनी में वे अखबार में जगह बाँचना शुरू करते हैं
सस्ते चाँवल की टुकड़नों का ढचला
गले से सरकाते वे दुनिया को नापने निकल पड़ते हैं
सरकारी कारणों से कभी-कभार उन्हें
बापू या चपरासी की सुरक्षित जगह मिल जाती है
ऐसी खबरों पर मां अपने दूध की लाज रखने जैसा
कोई ऐतिहासिक वाक्य दोहराती है
पिता संकोच में लाठी रखने का अभिनय करते हैं
भाई बहन कुछ दिन गलियों में मस्ती से टिटकारी भरते हैं
कमबख्त सरकार उन्हें फेंक देती है दूर-दराज
चाहकर ऐसे बच्चे ज्यादा कुछ कर नहीं पाते
टीन के बक्से, पटे या खाट की नंगी पाटी पर टिकाये
अपनी नंगी पिंडलियाँ तय करते हैं नींद का दुर्गम सफर
समूचे घर के बोझ को आत्मा से थोड़ा हटा
हजारों-हजार व्यथित पिंडलियों के भीतर
मैं चुपके से लिखना चाहता हूँ एक कारगर कविता
मैं पिंडलियों से उठती धमक सुन रहा हूँ