Last modified on 29 मई 2010, at 13:51

यह बस्ते का भार / जा़किर अली ‘रजनीश’

Raj Kunwar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:51, 29 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़ाकिर अली 'रजनीश' }} {{KKCatBaalKavita}} <poem> कब तक मैं ढ़ोऊँगा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कब तक मैं ढ़ोऊँगा मम्मी, यह बस्ते का भार?

मन करता है तितली के पीछे मैं दौड़ लगाऊँ।
चिडियों वाले पंख लगाकर अम्बर में उड़ जाऊँ।

साईकिल लेकर जा पहुंचूँ मैं परी–लोक के द्वार।
कब तक मैं ढ़ोऊँगा मम्मी, यह बस्ते का भार?

कर लेने दो मुझको भी थोड़ी सी शैतानी।
मार लगाकर मुझको, मत याद दिलाओ नानी।

बिस्किट टॉफी के संग दे दो, बस थोड़ा सा प्यार।
कब तक मैं ढ़ोऊँगा मम्मी, यह बस्ते का भार?