भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अंध मोह के बंध तोड़कर / सुमित्रानंदन पंत

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 29 मई 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= मधुज्वाल / सुमित्रान…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अंध मोह के बंध तोड़कर
तु स्वच्छंद सुरा कर पान,
क्षण भर मधु अधरों का मिलना,
यह जीवन विधि का वरदान!
स्वप्नों के सुख में बह बेसुध,
मदिर गंध से भर ले प्राण,
उमर कहाँ से आए हम,
जाएँगे कहाँ, नहीं कुछ ज्ञान!