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अंध मोह के बंध तोड़कर / सुमित्रानंदन पंत

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अंध मोह के बंध तोड़कर
तु स्वच्छंद सुरा कर पान,
क्षण भर मधु अधरों का मिलना,
यह जीवन विधि का वरदान!
स्वप्नों के सुख में बह बेसुध,
मदिर गंध से भर ले प्राण,
उमर कहाँ से आए हम,
जाएँगे कहाँ, नहीं कुछ ज्ञान!