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उस गुलवदनी को पाकर भी / सुमित्रानंदन पंत

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उस गुलवदनी को पाकर भी
पा न सकोगे उसका प्यार,
जब तक क्रूर विरह का कंटक
सखे, न कर देगा उर पार!
कंघी को लो, तार तार जब तक
न हुआ था उसका गात,
फेर सकी वह नहीं उँगलियाँ
प्रेयसि अलकों पर सुकुमार!