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बाहर भीतर ऊपर नीचे / सुमित्रानंदन पंत
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बाहर भीतर ऊपर नीचे
जुटा अनंत समाज,
मायामय की रंग भूमि में
छाया-अभिनय आज!
इंद्रजाल का खेल हो रहा,
दीप सूर्य, ग्रह, चाँद,
स्वप्नाविष्ट खेलते सब जन
यहाँ सहर्ष विषाद!