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यदि मदिरा मिलती हो तुझको / सुमित्रानंदन पंत
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यदि मदिरा मिलती हो तुझको
व्यर्थ न कर, मन, पश्चाताप,
सौ सौ वंचक तुझको घेरे
करें भले ही आर्त प्रलाप!
ऐसे समय सुहाता किसको
नीरस मनस्ताप, ख़ैयाम,
फाड़ रही जब कलिका अंचल,
बुलबुल करती प्रेमालाप!