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गुण तो नि:संशय देश तुम्हारे गाएगा / हरिवंशराय बच्चन
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गुण तो नि:संशय देश तुम्हारे गाएगा,
तुम-सा सदियों के बाद कहीं फिर पाएगा,
- पर जिन आदर्शों को तुम लेकर तुम जिए-मरे,
- कितना उनको
- कल का भारत
- अपनाएगा?
बाएँ था सागर औ' दाएँ था दावानल,
तुम चले बीच दोनों के, साधक, सम्हल-सम्हल,
- तुम खड्गधार-सा पंथ प्रेम का छोड़ गए,
- लेकिन उस पर
- पाँवों को कौन
- बढ़ाएगा?
जो पहन चुनौती पशुता को दी थी तुमने,
जो पहन दनुज से कुश्ती ली थी तुमने,
- तुम मानवता का महाकवच तो छोड़ गए,
- लेकिन उसके
- बोझे को कौन
- उठाएगा?
शासन-सम्राट डरे जिसकी टंकारों से,
घबराई फ़िरकेवारी जिसके वारों से,
- तुम सत्य-अहिंसा का अजगव तो छोड़ गए,
- लेकिन उस पर
- प्रत्यंचा कौन
- चढ़एगा?