Last modified on 2 जून 2010, at 05:30

चली जल को सीता सुकुमारी / गुलाब खंडेलवाल

Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:30, 2 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेल…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


चली जल को सीता सुकुमारी
रघुकुल-वधू, प्रिया-त्रिभुवननायक की, जनक-दुलारी 
 
उभरे चित्र विकल कर मन को 
फिर पति के सँग निकली वन को 
चित्रकूट पर फिर दर्शन को 
जुड़े अवध-नर-नारी 
 
फिर कंचन-मृग मन को भाया 
प्रभु को धनु-शर ले दौड़ाया
देवर से हठ स्मृति में आया
गली ग्लानि की मारी
 
दिखे भालु-कपि शीश झुकाये
लौटी अवध, हर्ष फिर छाये
टूटा ध्यान, नयन भर आये
फिरी लिए घट भारी

चली जल को सीता सुकुमारी
रघुकुल-वधू, प्रिया-त्रिभुवननायक की, जनक-दुलारी