Last modified on 3 जून 2010, at 08:00

बांची तो थी मैंने / कन्हैयालाल नंदन

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:00, 3 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कन्हैयालाल नंदन }} {{KKVID|v=1P05lERBM7k}} <poem> बांची तो थी मैंने …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

बांची तो थी मैंने खण्डहरों में लिखी हुई इबारत
लेकिन मुमकिन कहाँ था उतना उस वक्त ज्यो का त्यो याद रख पाना
और अब लगता है कि बच नहीं सकता मेरा भी इतिहास बन जाना
कि बांचा तो जाउंगा लेकिन जी न पाउंगा