भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बाढ़ / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
Tusharmj (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:28, 3 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }} बाढ़ आ गई है, बाढ़! बाढ़ आ गई ह…)
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
- वह सब नीचे बैठ गसा है
- जो था गरू-भरू,
- भारी-भरकम,
- लोह-ठोस
- टन-मन
- वज़नदार!
और ऊपर-ऊपर उतरा रहे हैं
- किरासिन की खालीद टिन,
- डालडा के डिब्बे,
- पोलवाले ढोल,
- डाल-डलिए- सूप,
- काठ-कबाड़-कतवार!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!
बाढ़ आ गई है, बाढ़!