भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतना ज्यादा वर्तमान / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:50, 4 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विष्णु नागर |संग्रह=घर से बाहर घर / विष्णु नागर }} <…)
मैं अपना बचपन भूल रहा हूँ
अपने बच्चों का बचपन भी
इतना ज्यादा वर्तमान हो रहा हूँ
कि मुझे इतिहास होने में देर नहीं लगेगी।