ख़फ़ा जिनसे अक्सर चमनज़ार होंगे ,
ज़रूरी नहीं बस वही ख़ार होंगे !
कई गुल भी होते कभी शोख़ इतने ,
चमनज़ार भी जिनसे बेज़ार होंगे !
सियासत का मारा जहां गुलिस्तां है ,
वहां बर्गे-गुल तक भी बीमार होंगे !
खिलेंगे वही फूल उजड़े चमन में ,
जो बेकार होंगे या लाचार होंगे !
चुभे कितने गुलचीं के हाथों में कांटे ,
कि करते गुलों से बहुत प्यार होंगे !
रहेंगे सलामत जो दौरे-ख़िज़ां में ,
बहारों के उनको ही दीदार होंगे !