भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये बादल अँधेरे बढ़ाएँगे लेकिन / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:23, 5 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुभूषण शर्मा 'मधुर' }} {{KKCatGhazal}} <poem> ये बादल …)
ये बादल अँधेरे बढ़ाएँगे लेकिन
वो सूरज कहाँ तक छुपाएँगे लेकिन
बराबर है कहना न कहना सनम से
किसे हाल अपना सुनाएँगे लेकिन
हो पत्थर जिगर लाख फ़ौलाद दिल हो,
इन आँखों में आँसू तो आएँगे लेकिन
चलें आँधियाँ या चमकती हो बिजली
नशेमन हम अपना बनाएँगे लेकिन
चलो लाख ख़ुद को बचा कर ‘मधुर’ जी
कहीं तो क़दम लड़खड़ाएँगे लेकिन