भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सवाल / मुकेश मानस
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:44, 6 जून 2010 का अवतरण
एक सवाल है
जो रोज़ मुझसे मिलता है
कोई ख़ुशी नहीं होती
मुझे उससे मिलकर
मैं उससे बचने की
हर संभव कोशिश करता हूं
मगर ताज्जुब है
वह बड़ी आसानी से
मुझे खोज लेता है
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
या जैसे कि ‘वह’ मैं ख़ुद हूँ
आँखों में आँखें डालकर
बस यही पूछता है
जीवन ऐसा क्यों मिला
जीते हुए जिसे
हर पल होता रहे गिला
रचनाकाल : 1998