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सवाल / मुकेश मानस

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एक सवाल है
जो रोज़ मुझसे मिलता है
कोई ख़ुशी नहीं होती
मुझे उससे मिलकर

मैं उससे बचने की
हर संभव कोशिश करता हूं
मगर ताज्जुब है
वह बड़ी आसानी से
मुझे खोज लेता है
जैसे कि वह मेरे भीतर हो
या जैसे कि ‘वह’ मैं ख़ुद हूँ

आँखों में आँखें डालकर
बस यही पूछता है
जीवन ऐसा क्यों मिला
जीते हुए जिसे
हर पल होता रहे गिला

रचनाकाल : 1998