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उधेड़-बुन / मुकेश मानस

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उधेड़-बुन

ये कैसा नरक है
जिसमें हम जी रहे हैं
जाने-अनजाने ज+हर पी रहे हैं

इस सवाल से क्यों पड़ता है
बार-बार मेरा वास्ता
मेरे लोगों को बचा ले जो
वह कौन-सा है रास्ता

बार-बार अपने शहीदों का
ख्याल आता है
फिर अपनी जवानी पर
मलाल आता है
अपने ही लोगों पर
जाने क्यों प्यार आता है
ये कैसा विश्वास है
जो बार-बार आता है

रचनाका:1990