Last modified on 6 जून 2010, at 14:07

आदेश के बाद / मुकेश मानस

Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 6 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुकेश मानस |संग्रह=पतंग और चरखड़ी / मुकेश मानस }} …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आदेश के बाद

बंद कर दी गई
कारखानों की चिमनियां
मशीन चलाने वाले
गेटों से बाहर धकेल गए
इस तरह
उनकी सांसों के पत्ते खेले गए

हम बस्तियों में गए
उनको घर-घर में ढूंढ़ा
पालनों में, स्कूलों में, खेल के मैदानों में
बच्चे अब वहां नहीं थे
हमने उन जगहों की कल्पना की
जहां वे अब थे

मार तमाम गलियों में
संतोषी कथाओं के बावजूद
औरतों संतुष्ट नहीं थीं
वो गा रही थीं
हाय बनके पत्थर दिल अन्यायी
जज ने कैसे कलम चलाई
हमने उसका क्या बिगाड़ा है
उसने हमकों क्यों उजाड़ा है

रचनाकाल:1996