भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हाथी / मुकेश मानस

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:25, 6 जून 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाथी आए बस्ती में
नहीं थे कोई मस्ती में
बच्चे लगे बजाने ताली
हाथ बड़ों के नहीं थे खाली

ऊपर कसे हुए थे आसन
थे सवार के वो सिंहासन
असवार चैंन से सोए थे
सुखद स्वप्न में खोए थे

पत्ते थे कुछ पड़े हुए
हरे-हरे, कुछ सड़े हुए
हाथी कुछ ना खाते थे
बस तकते ही जाते थे

इक दूजे के पास थे
हाथी बहुत उदास थे
इतने थके हुए थे वो
जैसे मरे हुए थे वो

रचनाकाल:1988