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तू मचल कहकहे लगाने को / नीरज गोस्वामी
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हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को
मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को
दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को
सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को
बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को
हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को
सबसे बेहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को