भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू मचल कहकहे लगाने को / नीरज गोस्वामी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:45, 8 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज गोस्वामी }} {{KKCatGhazal}} <poem> हाल बेताब हों रुलाने क…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हाल बेताब हों रुलाने को
तू मचल कहकहे लगाने को

मुश्किलों का गणित ये कैसा है
बढ़ गयीं जब चला घटाने को

दौड़ हम हारते नहीं लेकिन
थम गये थे तुझे उठाने को

सांस लेना मुहाल कर देगा
सर चढ़ाया अगर ज़माने को

बिजलियों का है खौफ़ गर तारी
भूल जा आशियाँ बनाने को

हमसे दम भर रहे थे रिश्ते का
चल दिए जब कहा निभाने को

सबसे बेहतर है चुप रहें 'नीरज'
जब नया कुछ न हो सुनाने को