Last modified on 8 जून 2010, at 22:39

रस स्रवण / सुमित्रानंदन पंत

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:39, 8 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |संग्रह= स्वर्णधूलि / सुमित्र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रस बन रस बन,
प्राणों में!
निष्ठुर जग निर्मम जीवन
रस बन रस बन
प्राणों में!

अंतस्तल में यथा मथित हो,
भाग भंगि में ज्ञान ग्रथित हो,
गीति छंद में प्रीति रटित हो,
क्षण क्षण छन
रस बन रस बन
प्राणों में!

तम से मुक्त प्रकाश उदित हो
घृणा युक्त उर दया द्रवित हो
जड़ता में चेतना अमृत हो
गरज न घन,
रस बन रस बन
प्राणों में