एकं सत् / सुमित्रानंदन पंत
इन्द्रदेव तुम स्वभू सत्य सर्वज्ञ दिव्य मन
स्वर्ग ज्योति चित् शक्ति मर्त्य में लाते अनुक्षण!
ऋभुओं से त्रय रचित तुम्हारा ज्योति अश्व रथ
प्राण शक्ति मरुतों से विघ्न रहित विग्रह पथ!
तुम्हीं अग्नि हो, सप्तजिह्व अति विव्य तपस द्युति
पहुँचाती जो अमर लोक तक धी घृत आहुति!
दिव्य वरुण तुम, चिर अकलुष ज्यों विस्तृत सागर
मन की तपः पूत स्थिति, उज्वल, अखिल पाप हर!
तुम्हीं मित्र हो ज्योति प्रीति की शक्ति समन्वित
राग बुद्धि कर्मों में समता करते स्थापित!
गरुत्मान तुम, ज्योतित पंखों के उड़ान भर
आत्मा की आकांक्षा को ले जाते ऊपर!
तुम हो भग, आशा सुखमय, चिर शोक पापहन्!
सूक्ष्म दृष्टि, ईप्सा तप की तुम शक्ति अर्यमन्!
मधुपायी युग अश्विन, तरुण सुभग द्रुत भास्वर,
रोग शमन कर, नव निर्मित तुम करते अंतर!
अमृत सोम तुम झरते दिव आनंद से मुखर
अन्न प्राण जीवन प्रद मुक्त तुम्हारे निर्झर!
काल रूप यम करते निखिल विश्व का विषमन,
तुम्हीं मातरिश्वा, सातों जल करते धारण!
तुम्हीं सूत, आलोक वर्ण ऋत चित के ईश्वर,
पथ ऊषाएँ, दिव्य ओरणाएँ सहस्र कर!
तुम हो, एक स्वरूप तुम्हारे ही सब निश्वित,
विधा उसे तुम बहुधा बहु नामों से कीर्तित!