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पुष्प की अभिलाषा / माखनलाल चतुर्वेदी

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कवि: माखनलाल चतुर्वेदी

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चाह नहीं मैं सुरबाला के

गहनों में गूंथा जाऊँ,

चाह नहीं प्रेमी-माला में

बिंध प्यारी को ललचाऊँ,

चाह नहीं, सम्राटों के शव

पर, है हरि, डाला जाऊँ

चाह नहीं, देवों के शिर पर,

चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ!

मुझे तोड़ लेना वनमाली!

उस पथ पर देना तुम फेंक,

मातृभूमि पर शीश चढ़ाने

जिस पथ जावें वीर अनेक।