पीर जब बेहिसाब होती है शायरी लाजवाब होती है इक न इक दिन तो ऐसा आता है शक्ल हर बेनकाब होती है चांदनी जिसको हम समझते हैं गर्मी-ए-आफ़ताब होती है बे मज़ा हैं सभी क़ुतुब खाने शायरी खुद किताब होती है शायरी तो करम है मालिक का शायरी खुद किताब होती है