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यादों के महुआ वन / राधेश्याम बन्धु

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यादों के-
महुआ-वन, तन-मन में महक उठे,
आओ हम बाँहों में, गीत-गीत हो जाएँ !

दिवसों की यात्राएँ
रातों में खो गईं,
सूर्यमुखी चर्चाएँ
छुई-मुई हो गईं !

मौसम के-
आश्वासन, दुश्मन से हो गए,
आओ हम राहों में, मीत-मीत हो जाएँ !

काँटे भी फूलों के
वेश बदल आते हैं,
रिश्तों के गुलदस्ते-
फिर-फिर चुभ जाते हैं !

अपने-
पिछवाड़े का हरसिंगार कहता है
आओ हम चाहों में, प्रीत-प्रीत हो जाएँ !