काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मेरे हाथ मेम
आज ऐसे कनकने लगी है
जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई
तेरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो
काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मेरे हाथ मेम
आज ऐसे कनकने लगी है
जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई
तेरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो