भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
काँच की सुर्ख़ चूड़ी / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:35, 14 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=ख़ुशबू / परवीन शाकिर }} {{KKCatNazm}} <p…)
काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मेरे हाथ मेम
आज ऐसे कनकने लगी है
जैसे कल रात शबनम में लिक्खी हुई
तेरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो