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चेहरा मेरा था निगाहें उसकी / परवीन शाकिर

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चेहरा मेरा था निगाहें उसकी
ख़ामोशी में भी वो बातें उसकी

मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गई
शेर कहती हुई आँखें उसकी

शोख लम्हों का पता देने लगी
तेज़ होती हुई साँसें उसकी

ऐसे मौसम भी गुज़ारे हमने
सुबहें जब अपनी थीं शामें उसकी

ध्यान में उसके ये आलम था कभी
आँख महताब की यादें उसकी